बुलंदशहर। वीरों की धरती बुलंदशहर के इतिहास में आजादी की जंग
से लेकर कारगिल युद्ध तक देश पर मर मिटने वालों की गाथाएं दर्ज है। कारगिल
युद्ध में यूपी के बुलंदशहर के कई जवान दुश्मन से लोहा लेते हुए शहीद हुए।
वहीं, ऑपरेशन विजय के दौरान दो दर्जन दुश्मनों को हलाक कर 19 गोलियां लगने
के बावजूद टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने वाले योगेन्द्र सिंह यादव को परमवीर
चक्र से नवाजा गया था। वर्ष 2014 में योगेन्द्र यादव को यूपी सरकार ने यश
भारती सम्मान से अलंकृत किया है।
बुलंदशहर के औरंगाबाद अहीर निवासी रामकरन सिंह का पुत्र योगेन्द्र यादव
1997 में भारतीय सेना में भर्ती हुआ था। शादी के महज 15 दिन बाद 20 मई 1999
को योगेन्द्र यादव को बॉर्डर पहुंचने का फरमान आया तो घर में सब सकते में
रह गये। देश में दुश्मनों ने घुसपैठ की थी। कारगिल युद्ध छिड़ चुका था।
योगेन्द्र यादव व उसके परिजनों ने वीरगाथा बताते हुए बताया कि 22 जून 1999
को कश्मीर घाटी से सटी तोलोलिंग पहाड़ी पर भेजा गया, जहां 22 दिन तक देश के
दुश्मनों से जंग के दौरान 22 जवान शहीद हुए और 12 जुलाई 1999 में तोलोलिंग
घाटी को फतेह करने के बाद 18 जवानों की घातक पलाटून को टाइगर हिल फतेह करने
का टास्क मिला।
लगी थी 19 गोलिया, फिर भी किया हमला
योगेन्द्र और उनकी टीम के सात जवानो पर भी दुश्मन ने हमला किया। इस हमले
में 6 जवान शहीद हो गए और योगेन्द्र को 19 गोलियां लगी। इतनी गोलियां लगने
के बाद भी योगेन्द्र ने धैर्य नहीं खोया और मौका पाकर दुश्मन पर ग्रेनेड से
हमला किया। इतना ही नहीं, घायल योगेन्द्र ने अपनी राइफल से भी गोलियां
चलाई और दुश्मन के 5 जवानो को मौत के घाट सुला दिया। इस तरह योगेन्द्र ने
शौर्यगाथा लिखते हुए टाइगर हिल्स पर तिरंगा लहराया।
योगेन्द्र के पिता भी 65 और 71 युद्ध में दिखा चुके है जौहर
कई महीनों के इलाज के बाद योगेन्द्र स्वस्थ हुए और उन्हें अद्वितीय साहस और
पराक्रम के लिए सेना के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाजा गया।
परमवीर चक्र पाने वाले योगेन्द्र अकेले जीवित सैनिक है। योगेन्द्र के पिता
रामकरन यादव भी सेना के जवान रहे और उन्होंने 1965 और 1971 के युद्ध में
अपनी वीरता के जौहर दिखाए थे। योगेन्द्र यादव को प्रदेश के यश भारती सम्मान
से भी नवाजा जा चुका है और 26 जनवरी 2016 को गणतन्त्र दिवस की परेड की
उन्होंने अगुवाई की थी।
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