Friday 22 May 2015

फांके करके बनाया “ताजमहल” वक्फबोर्ड को दिया

फांके करके बनाया “ताजमहल” वक्फबोर्ड को दिया

बुलंदशहर जिले के गांव कसेर के फैजुल हसन कादरी ने वह काम कर दिखाया है जो शहंशाह शाहजहां के अलावा किसी और बादशाह ने नहीं किया। 79 साल के फैजुल अपनी स्वर्गीय पत्नी तज्जमुली बेगम की याद में बुलंदशहर स्थित अपने प्लाट में एक मिनी ताजमहल बनवा रहे हैं।
मुगलिया शहंशाह शाहजहाँ की तरह अपने मरहूम बेगम के लिए ‘ताजमहल’ बनवाने वाले बुलंदशहर के फैजुल हसन कादरी ने अपने ताजमहल को पूरा करने के लिए एक बड़ा फैसला लिया है। कादरी ने अपने ताजमहल की बेहतरी के लिए उसे सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिकार में दे दिया है। करीब तीन वर्षो से तंगहाली के चलते इस ताजमहल का निर्माण अधर में लटका था और फैजुल हसन कादरी का ख्वाब भी अधूरा था।
बुलंदशहर के डिबाई इलाके के गाँव कसेर कला के रहने वाले 81 साल के रिटायर्ड पोस्टमास्टर फैजुल बुलंदशहर के डिबाई कस्बे के कसेर गांव में रहते हैं। फैजुल हसन कादरी ने अपनी बेगम तज्जुम्मली से उनके जीते-जी वायदा किया था कि वह उनकी याद में एक खूबसूरत मकबरा बनवायेगे। कादरी अपनी बेगम से बेइन्तेहा मुहब्बत करते थे। लेकिन खुदा ने उन्हे औलाद से महरूम रखा। तज्जुम्मली बेगम चाहती थी कि उनके मरने के बाद दुनियां उन्हें याद रखे।
फैजुल की पत्नी की मौत दिसम्बर 2011 में हो गयी। पत्नी की मौत के बाद फरवरी 2012 में 50 गुणा 50 फुट की इस अद्भुत इमारत को बनवाना शुरू किया। इसके लिए फैजुल ने अपनी सारी जमा-पूंजी खर्च कर दी है। अपने प्रॉविडेंट फंड की सारी रकम, तीन बीघे खेत बेच कर मिली रकम और पत्नी के सारे गहने बेच कर मिली रकम फैजुल अब तक 15 लाख से ज्यादा खर्च कर चुके हैं। परन्तु काम अभी अधूरा है और फैजुल किसी से मदद नहीं लेना चाहते।
दिसम्बर 2011 में शुरू हुआ निर्माण
दिसंबर 2011 में उनकी पत्नी तज्जमुली बेगम की मौत हो गई थी। पत्नी का मानना था कि मरने के बाद उनको याद रखने वाला कोई नहीं होगा। इसलिए एक ऐसी इमारत बनवाई जाए, जिसके जरिए लोग उन्हें सालों तक याद रखें। ऐसे में फैजुल ने वादा किया कि वह एक मिनी ताजमहल बनवाएंगे। पत्नी की मौत के बाद फरवरी 2012 में इस इमारत का निर्माण कार्य शुरू हुआ।
लगा चुके है जमापूंजी
फैजुल हसन कादरी ने अपने घर से सटे खेत में ही ‘ताजमहल’ का निर्माण शुरू करा दिया था। कादरी इस ताजमहल में अपने जीवन भर की गाढ़ी कमाई करीब 17 लाख रूपये खर्च कर चुके है। ताजमहल के लिए उन्होने अपनी जमापूँजी के अलावा अपनी बेगम के जेवर और कुछ जमीन भी बेच दी। आजकल वह खुद मुफलिसी में रहकर अपनी पैंशन का 70 फीसदी हिस्सा ताजमहल का निर्माण पूरा करने के लिए जुटा रहे थे। उन्होंने बताया कि ताजमहल पर संगमरमर लगने और उसके आसपास के सौन्दर्यकरण के लिए करीब 30 लाख रूपये का खर्च आने की और उम्मीद है।
असली ताज तो शानदार संगमरमर और महंगे लाल पत्थरों से बना हुआ है। पर फैजुल का यह ताज जाहिर है उतना भव्य नहीं हो सकता है। यह बलुआ पत्थर, लाल पत्थर, चूने, सीमेंट और लोहे से बन रहा है।
वक्फ बोर्ड के नाम किया ‘ताजमहल’
फैजुल हसन कादरी ने ताजमहल के साथ-साथ छह बीघा जमीन भी वक्फ बोर्ड के नाम शपथपत्र देकर रजिस्टर्ड करा दी है। कादरी के भाई मौजुल हसन व उनका पुत्र शागिव हसन इस जायदाद के मुतवल्ली बने रहेंगे। उन्होने शर्त रखी है कि उनके इंतकाल के बाद वक्फ बोर्ड हमेशा इस ताजमहल की हिफाजत करेगा लेकिन इसके निर्माण को पूरा करने में किसी भी शख्स का निजी सहयोग नही लिया जायेगा।
तज्जमुली बेगम के बराबर में दफन होना चाहते हैं फैजुल
फैजुल द्वारा बनवाए जा रहे इस मिनी ताजमहल में तज्जमुली बेगम दफन हैं। वह इसे जल्द से जल्द पूरा करवाना चाहते हैं। साथ ही उनकी इच्छा है कि मौत के बाद उन्हें भी वहीं तज्जमुली बेगम के बगल में ही दफनाया जाए। फैजुल का सपना है कि उनका ताजमहल भी बिल्कुल वैसा ही हो, जैसा आगरा में है। उसके सामने उसी तरह से फव्वारे हों, नक्काशी और बाग हो।
450 गजले लिख चुके है फैजुल
उर्दू, हिंदी और फारसी के जानकार फैजुल हसन कादरी अपनी बेगम के लिए अब तक 450 से ज्यादा गजलें लिख चुके है। अब वो इन गजलों का प्रकाशन उर्दू और फारसी के अलावा हिन्दी में भी कराया चाहते है।

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